भारत वन्दना
हिमगिरिमुकुट बिन्ध्यकटिभूषण सागर चरण पखार
गंग यमुन आंचल पर लहरे ब्रम्हपुत्र की धार
केशर क्यारी तिलक बन करे माथे का श्रंगार
कन्या अंतरीप पगनख से महासिंधु विस्तार
शस्यश्याम शतकोटि पुत्र माँ सदा लुटाये प्यार
योगज्ञान का दीप जलाये विश्व में जयजयकार
हिमगिरिमुकुट बिन्ध्यकटिभूषण सागर चरण पखार
– भगवती प्रसाद गुप्त